अध्याय 3-2

1852 Worte

"तुम कौन हो?" स्काई ने किसी की नज़रों के एहसास से अपनी गर्दन के पीछे के बालों को उठते हुए महसूस कर के पूछा। उसने उस दुलार को पहले भी महसूस किया था... किसी पतित की आंखें उसका पीछा कर रही थीं। "डीन," डीन फुसफुसाया, वह उसे चौंकाना नहीं चाहता था। जब चुप्पी लंबी खिंचने लगी तो डीन ने भौहें सिकोड़ीं, "अगर तुम नहीं चाहते कि तुम्हें लड़के कह कर बुलाया जाए... तो मुझे अपना नाम बता दो।" "तुम क्या चाहते हो?" स्काई ने ठंडे स्वर में पूछा। उसने कमरे में नज़र दौड़ाई, क्योंकि आवाज़ किसी दिशा से आने के बजाय उसके दिमाग के अंदर से आ रही थी। "सिर्फ बात करना चाहता हूँ," डीन ने कंधा उचकाया भले ही दूसरा आदमी उसे नहीं देख सका। उसने अपने पैरों को ऊपर खींच लिया ने झुक गया, क्योंकि उसने संकर की आँखों में चमकता हुआ प्रकाश देख लिया था, जो कह रहा था, 'लड़ो या भागो'। स्काई ने बेचेहरा आवाज पर भरोसा न करते हुए अपने दांत

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