अदृश्य - प्रसंग 1
जीवन सरल सहज रूप से जीने वाले भी किस घड़ी मुसिबतो में पड जाए कहना मुश्किल है ।
ओर मोह माया से दूर रहने वाले भी कब प्रेम में पड जाए कहना मुश्किल है ।
कहानी है मेरी रंजन उर्फ चीनटु की, एक सीधा साधा
लड़का हर परिस्थिति में खुश रहने वाला ओर सबमें खुशियां बांटने वाला ।
कहानी सुरु करने से पहले बात कर लेते हैं मेरी खामियां और खूबियों के बारे में ।
मेरी बातें मुझे जोड़कर सबको पसंद आती हैं।
मुझसे लोग खुश कम नाराज ज्यादा रहते है ।
मुझमें एक ही बेहतरीन खूबि है की
मुझमें कोई खूबी है ही नहीं ।
दिनांक-10/1/2017
मेरा ये दिन भी मेरे सभी आम दिन कि तरह रहेगा।
गाली सुनते हुए घर से निकलेंगे स्कूल पहुच कर सरप्राइज टेस्ट देंगे नम्बर ना आने पर मास्टर जी से पिटेंगे ओर फिर घर का तो क्या ही कहना।
मगर इन सबके बीच भी मैं खुश हूं, क्योंकि मेरे दोस्त मेरे साथ है, ओर सबसे अहम मेरी गायकी हालांकि ये मेरे अलावा किसी को पसंद नहीं। मगर मैं फिर भी गाता हूं क्योंकि मुझे किसी कि परवाह नहीं।
तो रोज़ कि तरह आज भी बस्ता उठाया और निकल पड़े अपने विद्यालय कि ओर मगर स्कूल टाइम से एक घंटा पहले और पहुंचे दो घंटे बाद। खैर हमारे स्कूल आने ना आने से फर्क पड़ता किसे है।
मगर वो क्या है ना हमारे गणित वाले अध्यापक कि हमारे पिताजी से पटती बहुत है। तो हमारे पिताजी को हमारे पल पल की सटीक जानकारी समय समय पर मिलती रहती है। इस कारण हमारे विद्यालय में हमसे पहले हमारे पिताजी पहुंच जाते हैं।
हमें लगा हम होशियार हैं मगर हमारे पिताजी तो आखिर हमारे पिताजी हैं। हम छुप छुप के कक्षा में जाने की कोशिश कर रहे हैं। और हमारी कोशिशों का सीधा प्रसारण हमारे पिताजी को हमारे प्रधानाचार्य के सामने किया जा रहा है। इसमें रोचक यह है कि हमें पता नहीं कि हमारे बारे में सबको पता है। और हमारे पिताजी उनकी पिटाई तो माशाल्लाह। आगरा के पेड़े बरेली की बर्फी जैसी है एक बार खाइएगा तो कभी नहीं भूलिएगा। और इतना मारने पर भी कहेंगे गया तो बेटा बाप पर ही है। यह सुनकर एक बार मैंने पूछ लिया था कि पिताजी क्या आप भी दादा जी से ऐसे ही पिटा करते थे। उसके बाद जो ठुकाई बनी ना। आज तक उस दिन के सपने आते हैं।
जारी है......
अदृश्य, हरिओम चौधरी